Natasha

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डार्क हॉर्स

चलिए, पहले आपको मस्त अदरक वाला चाय पिलाते हैं।" दूध का पैकेट लेकर आए रायसाहब ने कहा।

"लाइए हम बनाते हैं।" संतोष ने औपचारिकतावश बोल दिया।

"अरे नहीं महराज, आप जाइए जल्दी फ्रेश हो लीजिए। बाथरूम में देखते हैं हम पानी आ रहा है कि नहीं। " कहते हुए रायसाहब ने बाथरूम में नल चलाया पानी आ रहा था।

संतोष बाथरूम जाने के नाम से ही सिहर गया था। मन ही मन सोचा भला इस

बाथरूम से कोई फ़रेश होकर कैसे निकल सकता है। "बस हम ब्रश कर लेते हैं। " कहकर संतोष बेसिन पर ही मुँह धो वापस कुर्सी पर बैठ गया तब तक चाय बन गई थी। "आइए चाय लीजिए, बिस्कुट है क्या?" रायसाहब ने प्रश्नवाचक मुद्रा में पूछा।

""नहीं बस चाय ही रहने दीजिए।" सतोष ने समझते हुए कहा। "और बताइए कैसी रही यात्रा कैसा लग रहा है दिल्ली?" रायसाहब ने इत्मीनान

से बेड पर बैठते हुए पूछा।

"बढ़िया रहा, ट्रेन भी बस दो ही घंटा लेट था, यहाँ आने में भी कोई दिक्कत नहीं हुआ। हाँ साला यहाँ का बुड्ढा लोग बड़ा हरामी टाइप है हो रायसाहब। " संतोष ने चाय सुहकते हुए कहा।

रायसाहब ने उत्सुकता से पूछा, "क्या हुआ था ऐसा?" संतोष ने चाय टेबल पर रखते हुए मेट्रो पर मिले बुजुर्ग वाली घटना बताई।

रायसाहब ने गंभीर मुस्कान चेहरे पर लिए बड़ी बारीकी से सारी बात सुनी और बोले, "देखिए संतोष जी. पहली बात तो ये है कि हरामी होना उम्ररनिरपेक्ष है। आदमी किसी भी उमर में बुरा हो सकता है। कोई छोटा बच्चा व्यस्क से ज्यादा बुरा हो सकता है तो कोई वृद्धा उस बच्चे से ज्यादा बुरा हो सकता है। ये तो एक परिस्थितिजन्य अवस्था है और इस बात पर निर्भर है कि किसे, कैसे परिवेश में शिक्षा दीक्षा मिली है। वो कैसे समाज में रहा है। इसलिए ये कह देना कि यहाँ के सारे बुड्ढे खराब हैं, में नहीं मानूंगा। हमने गाँव में भी कई खराब बुड्ढे देखे हैं और यहाँ दिल्ली में कई अच्छे विनम्र बुजुर्ग भी देखता हूँ खुद हमारे नीचे वाले अंकल एक बेहद अच्छे इंसान हैं सो आप बस एक आदमी के व्यवहार के आधार पर पूरे वर्ग या समुदाय के प्रति कोई धारणा नहीं बना सकते। यही गलती दुनिया के कई इतिहासकारों और समाजशास्त्रियों ने की है। वही गलती, वही गलती आप दूहरा रहे हैं जो किसी सिविल सेवा की तैयारी करने वाले छात्र से तो कत्तई नहीं होनी चाहिए।" यह कह रायसाहब ने चाय सुडकी।

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